ग्राउंड रिपोर्ट: पलवल मस्जिद की पाकिस्तान से फ़ंडिंग का सच

दिल्ली से दो घंटे की दूरी पर उतावड़ मेवाती मुसलमानों का एक पिछड़ा गाँव है जहाँ सोमवार को दर्जनों मीडिया वाले आ धमके. फ़ोकस में थी एक मस्जिद जो बाहर से जितनी छोटी और अधूरी थी अंदर से उतनी ही बड़ी और सुंदर.
खुलफ़ए राशिदीन मस्जिद इतनी बड़ी है कि आस पास के गावों के 15 हज़ार मुसलमान एक साथ अंदर नमाज़ अदा कर सकते हैं. लेकिन मैं जब वहां पहुंचा तो मस्जिद काफ़ी खाली थी. छोटी बच्चियां और बच्चे क़ुरान पढ़ते ज़रूर नज़र आए. मुझसे कहा गया कि ये मस्जिद भी है और मदरसा भी.
इन दिनों ये मस्जिद सुर्ख़ियों में है. राष्ट्रीय जाँच एजेंसी या एनआइए का इल्ज़ाम है कि मस्जिद के इमाम मोहम्मद सलमान ने पाकिस्तान के हाफ़िज़ सईद (जमात उद दावा प्रमुख) की संस्था से पैसे लेकर मस्जिद बनाई है.
इमाम सलमान पिछले महीने गिरफ़्तार कर लिए गए. उनके साथ दो और लोगों को गिरफ़्तार किया गया. लेकिन गाँव के अधिकतर लोग इमाम सलमान पर लगे इल्ज़ाम को ग़लत मानते हैं.
माजिद का निर्माण 1998 में शुरू हुआ था और इसका उद्घाटन 2010 में हुआ. मुझे बताया गया कि अब तक इस पर 2 करोड़ रुपए खर्च किये जा चुके हैं.
इसके निर्माण के समय से जुड़े आस मुहम्मद नामी एक बुज़ुर्ग बोले, "सलमान के पिता एक बड़े धर्मगुरु थे जिनकी पहचान दुनिया भर में थी और उनमें से कुछ उन्हें मस्जिद की तामीर के लिए पैसे भेजते थे. मगर मस्जिद बनी है स्थानीय लोगों के चंदे से."
उन्हें ये नहीं जानकारी थी कि कौन किस देश से कितने पैसे भेजा करता था. उनका और वहां मौजूद लोगों ने हमें समझाने की कोशिश की कि मदरसों और मस्जिदों के लिए मुस्लिम मुल्कों में चंदा माँगना आम बात है. पिछले हफ्ते एनआईए की टीम को मस्जिद का दौरा करवाने वाले मुहम्मद इरशाद नाम के एक युवा ने कहा कि पाकिस्तान से या पाकिस्तानी संस्था से चंदा नहीं आता.
लखु नाम के एक बगल के गाँव के सरपंच के मुताबिक़, "हाफिज सईद तो एक अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है उससे पैसे कौन लेना चाहेगा."
मोहम्मद इरशाद ने कहा कि मस्जिद को स्थानीय हिंदुओं ने भी चंदा दिया है "कई हिंदुओं ने बिल्डिंग मटीरियल देकर इसकी मदद की है."
सरपंच लखु ने मस्जिद के बाहर खड़े होकर उसकी तरफ़ इशारा करके कहा कि अगर पाकिस्तान या किसी और देश से पैसे आते तो मस्जिद की तामीर अब तक पूरी नहीं हो जाती? मस्जिद का बाहरी हिस्सा कई जगहों पर अधूरा है.
दर्जनों मीडिया वालों की उपस्थिति में में वहां के मुसलमानों के चेहरों पर सवालिया निशान थे. कुछ ने बार-बार ये पूछा, "आज आप लोग क्यों आए हैं?" गांव वालों के हिसाब से इमाम सलमान की गिरफ़्तारी पिछले महीने हुई थी.
इमाम सलमान के पक्ष में सभी बोल रहे थे. झुंड में खड़े नसरू नामी एक बुज़ुर्ग व्यक्ति ने एक दस्तावेज़ हवा में लहराकर कहा कि ''मैंने मस्जिद में पैसे कम पड़ जाने के बाद अपनी ज़मीन बेच दी और मस्जिद के निर्माण में लगा दी. ये देखिए इस दस्तावेज़ को. सलमान की बिकी ज़मीन का ये दस्तावेज़ है."
लेकिन जो लोग सर्वसम्मति से कह रहे थे उसे मोहम्मद इरशाद ने शब्दों में इस तरह से पिरोया,"मस्जिद एक इस्लामी मरकज़ भी है जिसे पास के 84 गांवों की मदद से बनाया गया है. इसकी पूरी ज़मीन दस एकड़ है जो पंचायत ने दान की थी. लेकिन 100 के क़रीब परिवारों और दुकानदारों ने ज़मीन के एक बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा कर कर रखा है. इनकी क़ीमत करोड़ों में है. हम इन्हें यहाँ से हटाना चाहते हैं. इन लोगों ने हम पर मुक़दमा कर दिया है और हमें बदनाम करने के लिए इमाम सलमान और मस्जिद के ख़िलाफ़ बयान दिया है."
मस्जिद के बाहर दिल्ली जाने वाली सड़क पर लगातार कई दुकानें हैं जिनके मालिकों ने स्वीकार किया कि उन्होंने सलमान और उनके साथियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा ज़रूर किया है, लेकिन एनआइए से उनके बारे में कुछ नहीं कहा''
नसरु नाम के एक दूकानदार ने कहा, "एनआईटी (उनका मतलब था एनआईए) का नाम हमने कभी सुना भी नहीं है. हम उनसे कभी मिले भी नहीं."
सोचने वाली बात ये है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे के रिश्तेदार हैं और पीढ़ियों से इस गांव में रहते आ रहे हैं. वो आपस में मिलते भी हैं, फ़ंक्शन और शादियाँ भी अटेंड करते हैं, लेकिन जब से मुक़दमा शुरू हुआ है दोनों पक्ष एक-दूसरे के शत्रु जैसे बन गए हैं.
मस्जिद वाली ज़मीन और उस पर अवैध क़ब्ज़ा इस दुश्मनी की ख़ास वजह है.
अब ये सवाल कि इमाम मुहम्मद सलमान के ख़िलाफ़ दूसरे पक्ष ने बयान दिया कि नहीं ये एनआईए ही बता सकेगी. इमाम सलमान ने हाफ़िज़ सईद की दुबई-स्थित संस्था से चंदा लिया या नहीं इसका सच अदालत में मुक़दमे के दौरान ही सामने आएगा.

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